मारकण्डेय मन्दिर -मारकण्डेय मन्दिर जुखाला से लगभग तीन किलोमीटर दूर माकड़ी गांव में स्थित है। मन्दिर के ऊपर व्यास गुफा है। मन्दिर को ऋषि मारकण्डेय का जन्म स्थान भी माना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर एक साधु रहता था जिसके कोई संतान नहीं थी। संतान की इच्छामुर्ति करने के लिए साधु ने भगवान विष्णु की स्तुति की। भगवान ने साधु को पुत्र तो दिया परन्तु उसकी आयु 12 वर्ष दी। 12 वर्ष की अवधि पूरी होने पर धर्मराज के दूतो ने बालक अर्थात मारकण्डेय को लेने भेजा परन्तु वह तपस्या में मगन था। जैसे ही वह बालक मारकण्डेय ने भगवान विष्णु की तपस्या की तथा सृष्टि रहने तक अमर रहने का वरदान प्राप्त किया।
हर साल लगता है मेला:-यहां बंदला पहाड़ी की दूसरी तरफ इस मंदिर में महर्षि मार्कंडेय ने तपस्या की थी। लोक मान्यता के अनुसार देश के चारों तीर्थों के दर्शन करने के बाद इस मंदिर के दर्शन न करने पर श्रद्धालुओं को इसका पुण्य नहीं मिलता है, जिस कारण जिला के लोग चारों धामों की यात्रा करने के बाद यहां आते हैं। यहां हर साल बैसाखी पर 3 दिन का मेला लगता है। यहां पर उत्तरी भारत से श्रद्धालु स्नान करने के लिए आते हैं। मंदिर में महर्षि मार्कंडेय की काले पत्थर की मूर्ति है। इस मूर्ति के नीचे से प्राचीन काल से शीतल जल की धारा बहती है। मंदिर के पास ही एक अन्य चश्मा भी है, जहां पर स्नान करने से चर्म रोग ठीक होते हैं।
विवादों में रहा मंदिर:-बताया जाता है कि इस बारे में माननीय उच्च न्यायालय ने सरकार को कुछ दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यहां एक सन्यासी का निजी मंदिर भी है। इस सन्यासी ने अपने मंदिर के बाहर कुछ आपत्तिजनक शब्द लिखे थे। ‘मंदिर में शूद्रों का प्रवेश निषेध है’ ऐसे शब्दों से काफी हो हल्ला मचा था तथा मामला हिमाचल उच्च न्यायालय में गया था। इस मामले में मंदिर के बाबा को कई बार जेल की हवा भी खानी पड़ी थी।
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